विधानसभा की जनता चाहती है बदलाव ।
आवारा पशुओं से परेशान किसानों के लिए सरकार द्वारा अभी तक नहीं उठाए गए कोई ठोस कदम।
मुख्य संपादक – रमाकान्त मिश्रा
चंदला- मध्य प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव इस समय पूरे जोश में है हर पार्टी का प्रत्याशी अपनी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में डट चुका है इसी क्रम में चंदला विधानसभा में कुल 9 प्रत्याशी अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे हैं भाजपा से दिलीप अहिरवार तो कांग्रेस से हर प्रसाद अनुरागी (गोपी मास्टर) और दूसरी ओर सपा से पुष्पेंद्र अहिरवार मैदान में है, ऐसे में अगर चुनावी समीकरण देखा जाए तो गोपी मास्टर पिछले विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देख चुके हैं किंतु हार का अंतर बहुत ही काम था या यूं कहें कि राजेश प्रजापति की किस्मत ही अच्छी थी जो इस क्षेत्र से विधायक चुने गए, वहीं अगर पुष्पेंद्र अहिरवार की बात करें तो बसपा छोड़ कांग्रेस के बैनर तले उन्होंने क्षेत्र में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी फिर भी पार्टी ने पुष्पेंद्र अहिरवार को किनारे कर टिकट हर प्रसाद अनुरागी को दे दी, जिससे नाराज पुष्पेंद्र ने सपा का दामन थाम चुनावी मैदान में कूद पड़े एक नजर से अगर देखा जाए तो पुष्पेंद्र को हर वर्ग का समर्थन मिल रहा है साथ ही भाजपा द्वारा सिटिंग विधायक राजेश को टिकट न देकर नए चेहरे दिलीप अहिरवार पर दावा लगाना कितना सही होगा यह समय तय करेगा ,क्योंकि इस समय विधायक राजेश प्रजापति जो चुनाव प्रचार से दूरी बनाकर बैठे हैं तो वहीं दूसरी तरफ राजेश के पिता आरडी प्रजापति सपा के साथ पुष्पेंद्र अहिरवार के समर्थन में बीजेपी से बदला लेने की जुगाड़ में अपनी पूरी ताकत झोंक कर पुष्पेंद्र के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, अगर समीकरण को गंभीरता से देखा जाए तो पुष्पेंद्र अहिरवार इस समय बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
जातीय समीकरण भी बिगाड़ सकते हैं भाजपा का खेल।
चंदला विधानसभा से वोटर की बात करें तो सबसे ज्यादा अहिरवार समाज का है और दूसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर आता है भाजपा, बहुजन और सपा तीनों ने अहिरवार प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है अब ऐसे में देखना यह होगा कि आखिर अहिरवार वोटर एक होता है या बंटकर मतदान करता है, अगर अहिरवार समाज बिखरता है तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होता दिख रहा है और अगर एक होता है तो कन्फ्यूजन इस बात का है कि वह किसे सपोर्ट करता है क्योंकि इनके अलावा अन्य प्रत्याशी भी जो मैदान में है कहीं ना कहीं चुनाव पर वह भी सीधा इफेक्ट डाल सकते हैं।
भाजपा की मुसीबत बन सकते हैं स्थानीय मुद्दे।
इस समय क्षेत्र में गोवंश की समस्या किसानों के लिए मुसीबत से कम नहीं है आवारा पशुओं के कारण इस क्षेत्र के किसानों की कमर टूट चुकी है, हर चुनाव में किसानों को वादे तो मिले परंतु समस्या का हाल आज तक नहीं मिल सका, इसी तरह के अन्य मुद्दे भी है जैसे रोड़ों की समस्या, सिंचाई की समस्या, बिजली की समस्या और सबसे बड़ी समस्या विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार है जो कहीं ना कहीं सीधे तौर पर इस चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकता है।